शेरनी

 


एक बाघिन , जिसे आमतौर पर शेरनी कहा जाता है, का स्वभाव, आम धारणा के विपरीत, बड़ा ही निराला होता है। शेरनी अक्सर शांत और एकांत में रहती है और सौम्य स्वभाव से अपनी गरिमा बनाए रखती है। अपनी शक्ति का बेमतलब प्रदर्शन करना उसकी फ़ितरत नहीं होती। लेकिन उसके आसपास मौज़ूद जानवर इस परिष्कृत वृत्ति के पीछे छिपी उसकी ताक़त को भली भांति समझते हैं और होशियार रहते हैं। क्यूंकी शेरनी अपनी ज़रूरत और अपनी संतानों की रक्षा के लिए गहरा और असरदार वार कभी भी कर सकती है। 

अमित मसूरकर कृत  “शेरनी” में विद्या विंसेंट का क़िरदार का स्वभाव लगभग ऐसा ही है। 

आज इस ब्लॉग पर हम बात कर रहे हैं, ऑस्कर सम्मान 2017 में  भारत की आधिकारिक प्रविष्टि “न्यूटन” के निर्देशक अमित मसूरकर की अगली कृति “शेरनी” के विषय में।  2021 में प्रदर्शित हुई “शेरनी” भी “न्यूटन” की तरह एक असरदार और अलहदा कहानी है और ये भी अक्सर नज़रंदाज़ किए जा रहे विषय पर केंद्रित है।  लेकिन “न्यूटन” जैसी लोकप्रियता नहीं अर्जित कर पाई। 

निर्देशक अमित मसूरकर और लेखिका (कथा , पटकथा और संवाद) आस्था टीकु, हमें मध्य प्रदेश के बालाघाट के इलाकों में बसे जंगलों और उनके बीच बसे वन विभाग के दफ्तरों के नेपथ्य में एक कामकाजी महिला के जीवन के द्वंद्वों को बड़ी ईमानदारी और विस्तार से दिखाते हैं। 

हमारे तंत्र की व्यवस्था लगभग एक मकड़जाल है। एक ऐसा मकड़जाल जिसे हर जोश से भरा इंसान देखकर कोफ़्त से भर जाता है और इसे साफ़ करने की जुगत में पूरी गर्मजोशी से जुट जाता है। लेकिन ये जाल इतना बारीक़ी से और चतुराई से बुना गया है, कि इसको साफ़ करते-करते इंसान इंसमें कब फंस जाता है ये समझ भी नहीं पाता। पहले कुछ छटपटाहट होती है लेकिन फिर इसके साथ एक समझौता करके निर्विकार भाव से इसका हिस्सा बन जाना ही समझदारी हो जाती है। जहाँ “न्यूटन” के नूतन कुमार युवा हैं और जज़्बे से भरे हैं, वहीं “शेरनी” की विद्या को इस तंत्र में काम करते वक़्त हो चुका है, और उसकी छटपटाहट और रोष थोड़ा संयमित है और अपनी ज़मीन की खोज में है। 

विद्या की पोस्टिंग इस नए इलाक़े में विभागीय वन अधिकारी के रूप में होती है, और वहाँ पर व्याप्त कैजुअल पुरुष सत्तात्मक रवैये से उसे हर पल जूझना पड़ता है, जिसे विद्या आक्रामक रूप में नहीं बस अपनी कर्मठता और आधिकारिक कार्य के प्रति निष्ठा के साथ संयम के साथ टकराती है। 

साथी, जूनियर कर्मचारी, उच्च पदाधिकारी हों या आसपास के राजनैतिक दलों के नेता। जंगल में अवैध शिकार करने वाले शिकारी हों, या फिर उसके अपने परिवार के लोग। सभी किसी न किसी रूप में उसके स्त्री होने को अधिक रेखांकित करके उसके आधिकारिक काम को कमज़ोर साबित करते हैं। जंगल और जानवरों से ज़्यादा विभागीय सियासत से जूझती एक डीएफओ, जो नौकरी छोड़ना चाहती है, मगर मुंबई में एक प्राइवेट कम्पनी में काम करने वाला पति आर्थिक सुरक्षा के लिए ऐसा करने से मना करता है। इस सबके बीच के द्वन्द्व से अपने आप को बचाने का विद्या का तरीका है अपने काम के प्रति अपने आप को पूरी तरह समर्पित कर देना। उसकी दृष्टि में यही उसे इस जंगल-राज में अपनी पहचान बनाए रखने का एकमात्र ज़रिया है।  

इसी जंगल के आसपास के गाँव में एक शेरनी के आतंक से और उसे पकड़ने की जद्दोजहद के साथ फ़िल्म का कथानक जुड़ा हुआ है।  ग़ौरतलब बात ये है कि किस तरह विद्या के जीवन के संघर्ष और शेरनी के जीवन के संघर्ष एक जैसे नज़र आते हैं और एक समानांतर कथानक दिखाई पड़ता है।  लगभग सभी को  शेरनी के बचाव की फ़िक्र न होकर अपने निजी स्वार्थ के फ़िक्र होती है। 

यहाँ उसे कुछ लोगों जैसे कि ज़ूलॉजी के प्रोफ़ेसर हसन नूरानी, गाँव की निवासी ज्योति, और उनकी टीम विद्या की मदद लगातार करती हैं। वहीं विभाग के जूनियर कर्मचारी भी धीरे धीरे विद्या के कार्य निष्ठा और प्रोटोकॉल के निबाह की इच्छा को देखकर उसके क़ायल होने लगते हैं। 

फ़िल्म में विद्या विंसेंट के संतुलित रोष वाले  क़िरदार में विद्या बालन ने जानदार अभिनय किया है। इसके अलावा बाकी के क़िरदारों के लिए भी उच्च स्तर के कलाकार जैसे शरत सक्सेना, बृजेन्द्र काला, विजय राज़, नीरज कबी, मुकुल चड्ढा और संपा मण्डल हैं, जिन्होंने अपने क़िरदारों में जान डाल दी है। गोपाल दत्त, इला अरुण, सत्यकाम आनंद भी अन्य भूमिकाओं में नज़र आए और उत्तम अभिनय किया। 

यूं तो कहानी एक आदमखोर बाघ को पकड़ने के बारे में हैं लेकिन इसके खलनायक कहीं और ही छुपे हैं।  उच्च अधिकारी बंसल जो एक बेफ़िक्र, नाकारा कर्मी है और सरकारी और नैतिक कार्य के बजाए इलाके के नेताओं का पिट्ठू बन जाता है। डींगे हाँकने वाला बड़बोला शिकारी पिंटू भैया जिसे विभाग, बाघ को पकड़ने के लिए काम पर रख लेता है।  स्थानीय नेता जो आदमखोर शेरनी की आड़ में एक दूसरे पर कीचड़ उछालने का और अपना उल्लू सीधा करने में व्यस्त हैं। वन अधिकारी जिन्हें वन्यजीवों की रक्षा में कोई दिलचस्पी नहीं है; इन सबके बीच पर्यावरण, जानवरों और उससे जुड़े इंसानों के लिए विनाशकारी निर्णय लेने वाला हमारा पूरा समाज और सिस्टम। 

 सरकारी मशीनरी और महकमों की लचर कार्यशैली, यहाँ पर व्याप्त लालफ़ीताशाही और  अफ़सरशाही, जड़ों तक फैला हुआ भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद- बड़ी सफ़ाई और सजगता के साथ कहानी में पिरोया गया है। वहीं तंत्र के हर एक क्षेत्र में व्याप्त नीरसता, उदासीनता और सुस्ती को भी दिखाने का प्रयास हुआ है।  सरकारी कार्यालयों में ऊपर तक भरी फ़ाइलें जो धूल खाती रहती हैं उन्हे भी अक्सर नेपथ्य में दिखाया गया है। और इन सबके साथ एक पुरुष-प्रधान महकमें में विद्या की जद्दोजहद तो है ही। जंगल और उसकी सुंदरता और नीरवता को भी बड़ी बखूबी के साथ सुंदर दृश्यों में समेटा गया है। वन विभाग के कार्यों जैसे कैमरा ट्रैप, पैरों के निशानों की पहचान, और भी कई तकनीक और तौर तरीकों को बिल्कुल सत्यता के साथ बिना लाग-लपेट के दिखाया गया है। 

लेकिन इस अच्छे तकनीकी कार्य, बारीक सच्चाई, बेहतरीन अभिनय और सादगी के साथ कहानी के प्रदर्शन के अलावा जो बात इस फ़िल्म को ऊंचाई देती है वो इस फ़िल्म की कहानी है। विद्या और शेरनी दोनों का संघर्ष और उनकी समानता फ़िल्म का सबसे महत्वपूर्ण अंग है।  मेरे विचार से अगर मलयालम फ़िल्म “द ग्रेट इंडियन किचन” एक गृहणी के संघर्ष की सबसे बेहतरीन फ़िल्म है, तो “शेरनी” एक कामकाजी महिला के संघर्ष की किंचित सबसे बेमिसाल फ़िल्म है। 

'मैन वर्सेज़ एनिमल' की इस कहानी में पर्यावरण और विकास के बीच की टक्कर और उसके बीच इंसानों की भूमिका और जिम्मेदारी पर बड़ी सूक्ष्म टिप्पणी करती है ये कहानी।  ये ‘शेरनी’ दहाड़ या चीर फाड़ नहीं करती लेकिन घात लगाकर अचानक हमला करके एक तीखा घाव छोड़ती है।  बिना किसी शोर-शराबे और हंगामे के फ़िल्म मुद्दे की बात करती है। सही जगह पर चोट करती है और इस चोट के निशानों का मंथन दर्शक के हवाले छोड़ जाती है। 

फ़िल्म के अंत में जब विद्या एक दूसरे स्थान पर चली जाती है और वहाँ जानवरों के टेक्सीडर्मि वाले पुतलों के बीच जब फ़िल्म का अंत होता है, और नज़र एक शेरनी के पुतले पर पँहुचती है तो हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि क्या इस सरकारी तंत्र में जानवर की नियति एक पुतला बन जाना है ? और इस सामाजिक ढांचे में एक औरत की नियति क्या है ?

‘शेरनी’ को आप ऐमज़ान प्राइम पर यहाँ देख सकते हैं  

~ मनीष कुमार गुप्ता 

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