पैटरसन (Paterson)

पैटरसन (Paterson) 

( इस ब्लॉग पर पहली दफ़ा एक इंग्लिश फ़िल्म पर आलेख लिख रहा हूँ। हाँ! यह इसके उद्देश्य और तारतम्य को तोड़ता सा महसूस होता है, लेकिन इसे दर्ज करने का और कोई स्थान मेरे पास फिलहाल नहीं है इसीलिए यहीं पर जोड़ रहा हूँ। शायद बाद में इसे कहीं और स्थानांतरित कर दूँ। )

आधुनिक युग में कविता एक ऐसी कला है, जिससे आम आदमी अक्सर दूर भागता है। हिन्दी कविता के लिए तो खास तौर पर यही कहा जा सकता है कि मंचों की कविताई के अलावा , जो हास्य या बयानबाज़ी से ज्यादा कुछ खास नहीं कहती, बाकी हर तरह की कविता से आमतौर पर लोग बचते नज़र आते हैं, शायद इसीलिए क्योंकि कविता उनके लिए एक नीरस, दुर्गम या निराशा से भरी कला का रूप है।  इस बात का कारण शायद यह हो सकता है कि बचपन की तुकबंदियों के बाद, कविता से जो वास्ता पड़ता है वह परीक्षा में अंक पाने के लिए हिन्दी/इंग्लिश/क्षेत्रीय भाषाओं की कविता की संदर्भ सहित व्याख्या तक ही सीमित रह जाता है। या फिर इसके आगे पढ़ने वालों के लिए छंदों के प्रकार और मात्राओं की गणना की दुरूहता से यह फ़ासला और बढ़ता जाता है।  शायद इसी कारण से कविता को सार्वजनिक जीवन और लोकप्रिय कलाओं से दूर कर दिया गया है। इक्का-दुक्का सफलताओं को छोड़ कर। 

इसी वास्तविकता के संदर्भ में जिम जारमूष की पैटरसन एक उल्लेखनीय फ़िल्म है। जारमूष हॉलिवुड के एक ऐसे फ़िल्मकार हैं जिन्होंने सर्वधा लीक से हटकर, हॉलिवुड की परिभाषा में फिट नहीं होने वाली फ़िल्में बनाई।  मेरे विचार से 2016 में आई , पैटरसन इनमें से विशेष है। विशेष इसलिए क्यूंकी रचनात्मकता को इतनी बेबाक लेकिन ख़ूबसूरत तरीके से पहले कभी रूपहले पर्दे पर प्रदर्शित होते नहीं देखा। 

अमेरिकी कवि विलियम कार्लोस विलियम्स की रचनाओं से प्रेरित होकर, जरमुश ने पर्दे पर एक कविता को समर्पित कविता प्रस्तुत की है, जो दैनिक जीवन में कविता की उपस्थिति को दर्शाती है और प्रेरणा देती है। 

फ़िल्म की पृष्ठभूमि में है एक छोटा शहर पैटरसन , जहां के लोगों के जीवन में दूसरे छोटे शहरों की तरह ही अमूमन कुछ खास घटित नहीं होता है। यहीं हम मिलते हैं पैटरसन नामक एक बस ड्राइवर से, जो दिन भर तो शहर में बस चलाता है, और मौका मिलने पर कविताएँ लिखता है। एक बस ड्राइवर जो कवि भी है, या फिर एक कवि जो एक बस ड्राइवर भी है।  दर’असल उसके काम और उसके शौक के बीच के अंतर का धुंधला होना ही इस फ़िल्म की आत्मा है। 

बहुत सादी सी यह कहानी 7 दिन चलती है, जिसमें हम हमारे नायक को अपने दैनिक जीवन में जीते हुए देखते हैं। सुबह उठना, कॉफ़ी पीना, अपनी पत्नी लौरा से लंच बॉक्स लेना और अपने काम पर चले जाना। दिन भर बस चलाते वक़्त पूरे वातावरण को महसूस करना, सवारियों की बातें सुनना, लंच करते वक़्त, या बीच बीच में अपनी नोटबुक में कविताएँ लिखना। घर पँहुच कर अपने कुत्ते मार्विन को घुमाना, शाम को एक पास के बार में बियर पीना और घर पँहुच कर दिन समाप्त कर लेना, अगले दिन की तैयारी के लिए। 

जिस तरह यह सब हमारे सामने घटित होता है, हम सांस रोके बैठे रहते हैं कि अब इसके जीवन में वो मोड़ आएगा, जब हमारे नायक की संघर्ष यात्रा शुरू होगी। लेकिन अमूमन ऐसा कुछ होता नहीं है। एक बार बस के खराब होने पर हमें दर्शक के रूप में महसूस होता है कि ये वो पल है जब पॅटरसन को अपने नायकत्व को प्रदर्शित करने का मौका मिलेगा, लेकिन वहाँ भी कुछ खास नहीं होता है। 

फ़िल्म में बेहद दिलचस्प मोटिफ हैं, जिसे दर्शक किसी अलंकार के रूप में देख सकते हैं। मार्विन का रोज़ एक खंबे को टेढ़ा करना और पैटरसन का उसे शाम को उसे ठीक करना। उसके सह कर्मचारी डॉनी का अपने जीवन की समस्याएँ सुनाना, बार में एक प्रेमी युगल के कभी प्यार , नोकझोंक और कभी तकरार होना। लौरा का अलग अलग तरह की कला में अपना हाथ आजमाना, और सबसे विशेष हर जगह पैटरसन को जुड़वा लोगों का नज़र आना। यह सारी ही बातें कुछ कहती हैं। शायद हर दर्शक से अलग अलग बातें। 

हम देखते हैं कि पैटरसन और उसकी पत्नी लौरा के बीच में बहुत प्यार है, लेकिन दोनों का व्यक्तित्व बिल्कुल विपरीत मालूम होता है। लौरा भी एक कला से प्यार करने वाली रचनात्मक स्त्री है, और अनेक कलाओं में अपना हाथ आज़माती है। चित्रकला, पकवान बनाना, गिटार बजाना इत्यादि और इनमें खासी महारत भी हासिल करती जाती है। लौरा अपनी हर कला से जुड़े किसी सपने की बात करती है, कि वह किस तरह इस कला से प्रसिद्ध होना चाहती है और पॅटरसन उसे प्रोत्साहन और मदद करता है। वहीं हम देखते हैं कि पैटरसन अपनी कविताओं को बस अपने तक ही रखता है और लौरा की लाख ज़िद के बाद भी पुस्तक छपवाने के लिए कोई पहल नहीं करता है।  यहाँ फ़िल्मकार ने बड़ी कुशलता से कला जगत और कलाकारों के मध्य मौज़ूद विरोधाभास को प्रस्तुत किया है। किसी भी प्रकार की बयानबाज़ी किए बिना। या फिर कह सकते हैं, कि कला के दो रूप हैं, एक अपने आसपास घटित बातों को व्यवस्थित रूप से गहराई से देखना और दूसता अव्यवस्थित, अप्रत्याशित और आकस्मिक बातों के लिए तैयार रहना और उसके प्रभाव में रचनात्मकता ढूँढना, दोनों को एक दूसरे के समक्ष एक दूसरे के पूरक के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

एक और काबिले-ग़ौर बात यह भी है कि हमारे नायक के आसपास उसे अति नाटकीय लोग अक्सर मिलते हैं,  जैसे उसका सहकर्मी डॉनी, अक्सर अपने जीवन का रोना रोता है, और जब पैटरसन से पूछता है कि तुम कैसे हो, तो वह कहता है “मैं ठीक हूँ”। हम देखते हैं कि बार में एक लड़की और लड़के के बीच अक्सर नाटकीय बातें होती रहती हैं। लेकिन इसके ठीक विपरीत , हमारा नायक इन सब बातों से विरक्त अपना जीवन यापन करता है, और कविताएँ लिखता है। 

जब पैटरसन शहर के मध्य अपनी बस चलाता है, तो अक्सर अपने आसपास की आवाज़ों और दृश्यों को महसूस करता है और उन सब बातों को अपने शब्दों में ढालता है। जारमूष ने जैसे परदे पर एक दृश्य कविता प्रस्तुत की है, जिसमें इन सात दिनों की कहानी जैसे गीत के सात बंध हों। पैटरसन की एक कविता का अनुवादित स्वरूप देखिए - 

“ मैं अरबों-खरबों अणुओं के बीच से गुज़रता हूँ,

जो मुझे राह देने के लिए हट जाते हैं। 

वहीं मेरे दोनों तरफ़ भी अरबों अणु हैं 

जो अपनी जगह पर ठहरे हैं। 

विन्ड्शील्ड का वाइपर आवाज़ कर रहा है,

बारिश रुक गई है। 

मैं रुक गया हूँ।“

फ़िल्म में पैटरसन की भूमिका में एडम ड्राइवर ने बेहतरीन अभिनय किया है, और उनका पूरी शिद्दत से सहयोग किया है गोलशिफ़्तेह फ़रहानी ने लौरा की भूमिका में। अन्य सारे कलाकारों ने भी अपने अपने पात्रों का बखूबी निबाह किया है। यहाँ अमेरिकी कवि रॉन पेजेट का ज़िक्र करना भी आवश्यक है जिन्होंने, फ़िल्म में उद्धृत सारी कविताओं की रचना की है। 

फ़िल्म का अंत बेहद सुरुचिपूर्ण है।  जब मार्विन, उसकी कविताओं की किताब को फाड़ डालता है, तो अपने रोष को शांत करने पैटरसन अपने प्रिय वाटर-फ़ाल किनारे पँहुच जाता है, जहां उसे एक जापानी कवि मिलता है, जो विलियम कार्लोस विलियम्स की भूमि को तीर्थ मानकर वहाँ आया है। वहाँ उनकी बातों में ही हमें फ़िल्म का आवश्यक संदेश मिलता है। कविता लिखने, या रचनात्मक होने, के लिए किसी भी चीज़ की ज़रूरत नहीं है, और कोई कहीं भी, किसी भी परिस्थिति में, कविता लिख सकता है। ज़रूरत है बस एक खाली पन्ने की। 

पैटर्सन को आप अमेजॉन प्राइम पर यहाँ देख सकते हैं - https://www.amazon.com/Paterson-Adam-Driver/dp/B08J8J9B76

~मनीष 


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