Milestone (मील पत्थर) -2021
Milestone (मील पत्थर) -2021
जब भी आप हम किसी ट्रक और ट्रक-ड्राइवर के बारे में सोचते हैं तो अक्सर हमारे सामने बड़े सतरंगी दृश्य आते हैं। तरह तरह के रंगों वाले, रंग-बिरंगी झालरों से सज्जित और भड़कीले रंगों से सुसज्जित ट्रक। जिन पर सस्ती शायरी , “पप्पू दी गड्डी”, “ बुरी नज़र वाले तेरा मुंह काला” और “हॉर्न ओके प्लीज़” जैसे शब्दों की सज्जा व्याप्त रहती है। और ट्रक ड्राइवर जो जेहन में आते हैं वो अक्सर खुश-मिज़ाज़ और मस्ती से झूमते हुए। पंजाबी गीतों को ट्रक के साउन्ड सिस्टम पर
, पूरे जोर से सुनते हुए, मतवाले से ट्रक ड्राइवर।
ट्रक वालों की ज़िंदगी की यह छवि इस तरह से बार बार हमें रुपहले परदे पर दिखाई गई है, कि उनकी ज़िंदगी की गहराई और उनके संघर्षों से हम अछूते रह जाते हैं।
आज हम चर्चा कर रहे हैं, 2021 में प्रदर्शित हुई, फ़िल्म “माइल्स्टोन” या “मील पत्थर” के विषय में। निर्देशक ईवान अय्यर द्वारा निर्देशित ये दूसरी ही फ़िल्म है। माइल्स्टोन में उपरोक्त ट्रक ड्राइवर की छवि के विपरीत, ट्रक चालकों के जीवन की सच्चाई को गहराई से दिखाया गया है। इनके जीवन के संघर्षों को बड़ी सफाई से एक बेहद संवेदनशील कहानी के परिप्रेक्ष्य में पिरोया है।
अपनी पहली ही फ़िल्म ‘सोनी’ (2018 ) से समीक्षकों और फ़िल्म आलोचकों की भरपूर प्रशंसा हासिल कर चुके ईवान की यह फ़िल्म भी ‘सोनी’ की तरह बहुत गहन और संवेदनशीलता से पूर्ण है। जिस प्रकार “सोनी” में हम क़रीब से दो महिला पुलिसकर्मी के जीवन-संघर्ष और सामाजिक टकराव को देखते हैं, वहीं “माइल्स्टोन” में दो ट्रक चालकों के जीवन के साथ हमें यात्रा करने का मौका मिलता है।
फ़िल्म की शुरुआत से ही एक रोचक बात आपको बांध लेती है। फ़िल्म के मुख्य पात्रों के नाम हैं “ग़ालिब” और “पाश” । ईवान और नील मणि कान्त , जो इस फ़िल्म के लेखक हैं, उनका अपने पात्रों के लिए इन नामों को चुनने के पीछे शायद यह जताने की कोशिश है कि ट्रक वाले और कवियों के जीवन में बड़ी समानताएँ हैं। दोनों ही अपने व्यक्तिगत जीवन में परेशानियों से जूझते हुए भी अपने काम में लय और गति बनाए रखते हैं। या फिर शायद ये प्रतीक है दोनों के जीवन में व्याप्त एकाकीपन का।
कोविड-19 की महामारी के दौरान विश्व के कई लोगों ने परेशानियाँ और दुख सहा है। साथ ही अकेलापन को बहुत क़रीब से महसूस किया है। अगर इस अकेलेपन को आप ध्यान में रखते हुए इस फ़िल्म को देखते हैं तो आप इसकी मूल भावना से अच्छी तरह जुड़ पाएँगे । माइलस्टोन एक गंभीर फिल्म है जो ट्रक ड्राइवर गालिब के अकेलेपन और वीरानी के संघर्षों में सेंध लगाती है। एक ऐसा शक्स जो बदलती दुनिया के सामने प्रासंगिक बने रहने के अपने प्रयास में है और किस तरह उसके लिए हाथ-पाँव मार रहा है।
कहानी कुछ यूं है कि, ग़ालिब एक अधेड़ उम्र का ट्रक ड्राइवर है, जिसने हाल ही में अपनी पत्नी को खो दिया है। ग़ालिब अपने पेशे के अकेलेपन से परेशान तो है लेकिन वही उसकी पहचान भी है, इसीलिए पूरी तन्मयता से अपने काम से जुड़ा हुआ है और कड़ी मेहनत करता है। अपनी बढ़ती उम्र के कारण शरीर की कमजोरियों से भी वो परेशान है। शरीर की उम्र हो जाना उसके लिए नौकरी खो देने का सबब किसी भी वक़्त हो सकता है।
इस बीच उसकी ट्रांसपोर्ट कंपनी के मालिक उसे एक नए नौजवान ड्राइवर “पाश” को ट्रैनिंग और परामर्श देने के लिए कहते हैं। ग़ालिब को डर है कि पाश ही उसकी जगह लेकर उसे बाहर करने का कारण बन सकता है।
ग़ालिब की पत्नी इताली, उनके प्रेम, संबंध, शादी और मृत्यु के विषय में हमें धीरे-धीरे टुकड़ों में जानकारी मिलती है। ट्रांसपोर्ट क्षेत्र से जुड़े लोगों के जीवन में जो रिश्ते होते हैं वे अक्सर खटास और कटुता में डूब जाते हैं। जीवन के सबसे बड़ा हिस्सा सड़क पर बिताने के कारण एक आम पारिवारिक जीवन की संभावना कम होती जाती है। ग़ालिब के निजी जीवन और उनकी पत्नी की दुर्भाग्यपूर्ण आत्महत्या जैसी बातों में भी यही बात दिखाई पड़ती है।
वहीं हम ट्रांसपोर्ट जगत में व्याप्त, पूंजीवाद का भी अवलोकन करते हैं। किस तरह ट्रांसपोर्ट कंपनियों के मालिक अपने कर्मचारियों की सेहत, परिवार और जीवन की परवाह किए बगैर सिर्फ मुनाफ़े को ही अपना सिद्धांत समझते हैं। ये सारी बातें हमें ग़ालिब के जीवन के साथ चलते हुए मालूम होती हैं।
इस फ़िल्म के मूड को बनाए रखने में बड़ा हाथ एंजेलो फैसिनी की सिनेमैटोग्राफी का भी है। लंबे लंबे सिंगल शॉट्स के माध्यम से हमें ग़ालिब के जीवन की नीरसता न सिर्फ दिखाई पड़ती है बल्कि हम इसे नज़दीकी से महसूस भी करते हैं। ये लंबे लंबे शॉट्स, जो ग़ालिब के साथ साथ चलते हैं हमें उसका जीवन उसी के दृष्टिकोण से इस तरह दिखाते हैं कि हम भी वही जीवन जीने लगते हैं। इन्ही क्षणों से ही हमें इन पात्रों की पृष्ठभूमि का पता चलता है। जिस तरह कई बार चेक पोस्ट या ट्राफिक में ट्रक वालों को घंटों खड़ा रहना पड़ता है, कई बार उसी तड़प को दर्शाने के लिए दर्शकों को भी कई मिनट तक नीरसता झेलनी पड़ती है।
ग़ालिब का एकमात्र स्थायी रिश्ता अगर किसी से है, तो उसके ट्रक से । एक जगह वह कहता है , "मुझे यह भी नहीं पता कि मैं कहां रहता हूं,"। किसी भी ठिकाने का न होना और लगातार यायावरी का जीवन जीने की कड़वी सच्चाई ही इस फ़िल्म का व्यापक विषय है। ग़ालिब का घर है, लेकिन फिर भी उसका ठिकाना नहीं है। उसके पास कोई मंजिल नहीं है, महज पड़ाव हैं। सिर्फ माइल्स्टोनस !!! पाश के जीवन के बारे में भी यही बात सामने आती है। उसके पास भी घर नहीं है, सिर्फ़ घर ढूँढने की कोशिश में बीतते हुए “माइलस्टोन्स”
पाश के हाथों अपने काम और कमाई के जरिए के छिन जाने के डर में , ग़ालिब का जद्दोजहद करना हमें ये बताता है कि ये अस्तित्व और आजीवीका की लड़ाई , अमीर और ग़रीब के बीच नहीं , बल्कि ग़रीब और ग़रीब के बीच ही है। अमीर तो इससे अछूते अपने आप में खुश हैं। पूँजीपतियों की अपने आप को बनाए रखने की कोशिश और दूसरे पूँजीपतियों से प्रतियोगिता के मध्य में मज़दूर-वर्ग एक कच्चे माल से अधिक कुछ नहीं है। श्रमिकों की वफ़ादारी , अनुभव और उम्र से उनका वास्ता नहीं है। जहां मुनाफ़ा , वहीं उनका ट्रक दौड़ता है।
ग़ालिब के किरदार में सुविन्दर विक्की ने अपने अभिनय में जान डाल दी है। वहीं पाश के किरदार में लक्षवीर सारन ने भी मंजा हुआ अभिनय किया है। अन्य पात्र भी बेहतरीन अभिनय से इस दुनिया में दर्शक को खींचने में सहायक सिद्ध होते हैं।
फ़िल्म में मुझे जो बात बहुत खूबसूरत लगी वह है, “पीठ-दर्द” को एक प्रतीक के रूप में पेश करना। आजीविका की चिंता, समाज में अस्तित्व बनाए रखने के लिए दिन-रात, पूरे जीवन बस संघर्षरत रहना एक तरह का पीठ-दर्द ही है, जो एक बार शरीर में घर कर जाए तो आसानी से नहीं छोड़ता
फ़िल्म की कमियों के विषय में अगर कहूँ तो, इसकी धीमी गति ही इसके दर्शकों को शायद सबसे ज़्यादा असहज करेगी। लेकिन एक प्रकार से यह धीमी गति एक प्रकार का प्रतीक भी है ट्रक चालकों के जीवन को दर्शाने के लिए। अगर आपको धीमी गति की फ़िल्मों से परेशानी होती है तो आपको यहाँ उसका चरम दिखाई पड़ेगा
शायर पाश की पंक्तियों से ही इस विवेचना का अंत करता हूँ, जो चरितार्थ करती है ट्रक चालकों, श्रमिक वर्ग के लोगों और जीवन से जूझते अनेक लोगों के जीवन में व्याप्त नीरसता और निरंतर चलती दो पाटों की चक्की को -
“सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है, हमारे सपनों का मर जाना”
“माइल्स्टोन” को आप नेटफ्लिक्स पर यहाँ देख सकते हैं - https://www.netflix.com/Title/81381748
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