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Showing posts from December, 2022

मुक्ति भवन

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  मुक्ति भवन ओशो ने “मैं मृत्यु सिखाता हूँ” पुस्तक में कहा है , “जन्म और मृत्यु में गुण का फ़र्क नहीं है, सिर्फ़ मात्रा का फ़र्क है। ये विलोम शब्द नहीं है। जन्म बढ़ते-बढ़ते मृत्यु बन जाती है। इसका मतलब ये कि जन्म और मृत्यु एक ही चीज़ के दो बिन्दु हैं।  न जाने कैसी नासमझी में, न मालूम किस दुर्दिन में आदमी को यह ख़्याल बैठ गया कि जन्म और मृत्यु में विरोध है। हम जीना चाहते हैं, हम मरना नहीं चाहते। और हमें यह पता नहीं है कि हमारे जीने में ही मरना छिपा ही है। और जब हमने एक बार तय कर लिया कि हम मरना नहीं चाहते, तो उसी वक़्त तय हो गया कि हमारा जीना भी कठिन हो जाएगा।” मृत्यु, मृत्यु की प्रक्रिया की शुरुआत, और मृत्यु का स्वीकार्य-  बेहद गूढ़ और जटिल विषय है। अनेक महापुरुषों ने व्याख्या की लेकिन तब भी हम जीवन और मृत्यु को एक ही चीज़ के दो सिरे मान पाने में असमर्थ होते हैं। मृत्यु क्यों, और मृत्यु के बाद क्या, मुक्ति, मोक्ष इन सारी बातों के बारे में तो कल्पना और विवाद किया जा सकता है,  लेकिन मृत्यु के बारे में एक बात तयशुदा रूप से कही जा सकती है। वह यह कि इस प्रक्रिया का प्रभाव मृत्यु पाने वाले से कहीं ज़्य

गाँधी माय फ़ादर (Gandhi my father)

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गाँधी माय फ़ादर (Gandhi my father) गुलज़ार ने एक गीत में कहा है -    “तुम्हें ये ज़िद थी कि हम बुलाते, हमें यह उम्मीद वो पुकारें। है नाम होंठों पे अब भी लेकिन, आवाज़ में पड़ गई दरारें” हम सब अपने जीवन में कभी न कभी ऐसी दुविधाओं से अक्सर जूझते हैं, जिसमें हमें चुनाव करना पड़ता है राह और हमसफ़र के बीच, सिद्धांत और साथी के बीच, अपने सत्य और अपनों के सत्य के बीच।  जब हम आप भी इस दुविधा से गुज़रते  हैं तो एक महात्मा के पदवी पाने वाले इंसान और उसके आसपास के लोग कैसे बच सकते हैं। क्या इन्ही दुविधाओं के जूझना, संघर्षों का सामना करना और बिखर जाने की स्तिथि तक वज्रपात सहते रहना, ही महात्मा होना है? पता नहीं। आज परदानशीं ब्लॉग पर हम फ़िरोज़ अब्बास ख़ान कृत “Gandhi my father” पर बात कर रहे हैं।  फ़िल्म 2007 में प्रदर्शित हुई थी और गांधीजी के सबसे बड़े  पुत्र हीरालाल गाँधी और स्वयं गांधीजी के संबंध और उन संबंधों की यात्रा पर आधारित है।  चंदुलाल दलाल की किताब “Heeralal Gandhi: A Life” और उनकी पौत्री नीलमबेन परिख की पुस्तक “Gandhiji’s Lost Jewel” पर आधारित कथा, पटकथा ख़ान ने ही लिखी है और उनके ही नाटक “Gandhi Vs M

हामिद

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  हामिद  फ़िल्म के एक दृश्य में कश्ती बनाने वाले रसूल चाचा, बशीर मियां से कहते हैं, “बच्चों के उसूलों पर अगर दुनिया चल पाती, तो सचमुच में जन्नत हो गई होती”।   किंचित यही पंक्ति शायद इस फ़िल्म की आत्मा बयां करती है। पर्दानशीं पर हम आज बात कर रहे हैं 2018 में प्रदर्शित हुई फ़िल्म “हामिद” के विषय में।   “हामिद” कश्मीर की पृष्ठभूमि में एक सात साल के बच्चे  की अपने पिता को ढूँढने की कहानी है। जब आप कश्मीर पर बनी फ़िल्म की बात करते हैं तो सबसे पहले दिमाग में दो चीज़ें आती है। एक ओर तो मन में घूमती है  कश्मीर घाटी की निराली छटा, वहाँ की प्राकृतिक सुंदरता। बर्फ़ से भरी  पहाड़ियाँ, और चिनारों और सनोबर के दरख्तों से भरी वादियाँ।  वहीं दूसरी ओर, आँखों के सामने आते हैं वो दृश्य जो वहाँ पर व्याप्त राजनैतिक समस्याओं और अस्थिरता की कहानी कहते हैं। छावनी की तरह नज़र आने वाली सड़कें और मोहल्ले, सड़क पर बिखरे पत्थर, जगह जगह कभी कर्फ्यू का सन्नाटा तो कभी आज़ादी के नारों के बीच बेक़ाबू भीड़ का पथराव। जुम्मे की नमाज़ के रोज़ कश्मीर के मुस्लिम समाज का भीड़ में नमाज़ अदा करना और उनको घेर कर खड़ी हुई सेना के जवानों की टुकड़ी। 

शेरनी

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  एक बाघिन , जिसे आमतौर पर शेरनी कहा जाता है, का स्वभाव, आम धारणा के विपरीत, बड़ा ही निराला होता है। शेरनी अक्सर शांत और एकांत में रहती है और सौम्य स्वभाव से अपनी गरिमा बनाए रखती है। अपनी शक्ति का बेमतलब प्रदर्शन करना उसकी फ़ितरत नहीं होती। लेकिन उसके आसपास मौज़ूद जानवर इस परिष्कृत वृत्ति के पीछे छिपी उसकी ताक़त को भली भांति समझते हैं और होशियार रहते हैं। क्यूंकी शेरनी अपनी ज़रूरत और अपनी संतानों की रक्षा के लिए गहरा और असरदार वार कभी भी कर सकती है।  अमित मसूरकर कृत  “शेरनी” में विद्या विंसेंट का क़िरदार का स्वभाव लगभग ऐसा ही है।  आज इस ब्लॉग पर हम बात कर रहे हैं, ऑस्कर सम्मान 2017 में  भारत की आधिकारिक प्रविष्टि “न्यूटन” के निर्देशक अमित मसूरकर की अगली कृति “शेरनी” के विषय में।  2021 में प्रदर्शित हुई “शेरनी” भी “न्यूटन” की तरह एक असरदार और अलहदा कहानी है और ये भी अक्सर नज़रंदाज़ किए जा रहे विषय पर केंद्रित है।  लेकिन “न्यूटन” जैसी लोकप्रियता नहीं अर्जित कर पाई।  निर्देशक अमित मसूरकर और लेखिका (कथा , पटकथा और संवाद) आस्था टीकु, हमें मध्य प्रदेश के बालाघाट के इलाकों में बसे जंगलों और उनके बीच