रोड, मूवी
रोड, मूवी अपनी कुर्सी की पेटी बांध लीजिए! अब हम एक ऐसे सफ़र पर निकलने वाले हैं जो रोचक भी है अजीब भी, बेतुकापन लिए हुए भी, लेकिन शायद इन्ही सब बातों के बीच अपनी बात कह जाती है। सिनेमा में एक विधा है जिसे “रोड मूवी” यानि यात्रा कि फ़िल्में। इन फ़िल्मों में अक्सर मुख्य पात्र एक यात्रा पर निकल जाते हैं और अंत में यात्रा और फ़िल्म समाप्त हो जाती है। ऐसी फ़िल्मों की खासियत होती है कि इनमें कहानी का नायक सिर्फ़ बाहरी नहीं बल्कि अंदरूनी यात्रा भी कर रहा होता है। और अंत में उसमें एक मौलिक बदलाव नज़र आता है। आप और हम ने ऐसी कई फ़िल्में देखी होंगी। इन फ़िल्मों में अपनी ज़िंदगी के ढर्रे से बाहर निकलकर, अनजाने रास्तों और अजनबी लोगों के बीच एक तरह का पलायन, अपने मूल की खोज और एक बुनियादी परिवर्तन देखने को मिलता है। अनंत तक फ़ैली सड़कों में इंजन की गड़गड़ाहट के साथ धड़कते दिल की धड़कन एक अलग तरह का रोमांच पैदा करती है। “बॉन्नी एंड क्लाइड” से लेकर “जब वी मेट”, “बर्निंग ट्रेन” से लेकर “ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा”, यात्रा पर आधारित अनेक फ़िल्में हमने देखी और सराही हैं। इस तरह की फ़िल्मों में एक नया ढंग ढूंढा फ़िल्मकार